बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-IIसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- जहाँगीर की चित्रकला शैली की विशेषताएँ लिखिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. जहाँगीर ने अपने कलाकारों को कौन-कौन सी उपाधियाँ दी थीं?
2. जहाँगीर कालीन चित्रों में हमें कौन से पशु-पक्षी दृष्टिगोचर होते हैं?
उत्तर-
जहाँगीर की चित्रकला
जहाँगीर को एलबम बनाने का बड़ा शौक था। जहाँ कहाँ भी उसे पशु-पक्षी या प्रकृति चित्रण या शिकार के चित्र दिखाई देते वह अधिक से अधिक धन देकर उन्हें खरीद लेता था तथा अपनी एलबम में लगाता था। विद्वानों से भी बहुमूल्य चित्र जहाँगीर ने खरीदे। कुछ विद्वानों का मत है कि 'नूरजहाँ से उसको विशेष प्रेरणा मिली जिसके कारण वह प्रकृति सौन्दर्य का उपासक हो गया था। उसने उस्ताद मन्सूर से बहुत प्रकार के फूलों का चित्रण कराया।
जहाँगीर के काल में चित्रकार ( हिन्दू-मुस्लिम) इतने घुल-मिल गये थे कि यदि हिन्दू हाशिया बनाता या रेखा खींचता तो मुस्लिम रंग भरता था। यह जहाँगीर का ही उदार व्यक्तित्व था कि जनता ने मिलकर कार्य किया और इसी कारण जहाँगीर का समय स्वर्ण युग माना जाता है।
अकबर ने अधिकतर धार्मिक चित्र तथा दृष्टान्त चित्र बनवाये परन्तु जहाँगीर ने इसके विपरीत स्फुट चित्र, प्रकृति तथा पशु-पक्षियों व शिकार के चित्र बनवाये। इन चित्रों में अकबर कालीन चित्रों से अधिक बारीकी व सौन्दर्य मिलता है। जहाँगीर अपने क्रोध, करुणा व सौहार्द्र के कार्यों को भी चित्र रूप में बनवाता था । विशनदास शबीह (व्यक्ति चित्र) बनाने में सर्वश्रेष्ठ चित्रकार था ।
जहाँगीर ने नूरजहाँ का भी व्यक्ति चित्र बनवाया था, श्री हरमनग्वेत्स ने यह सिद्ध किया है । जहाँगीर ने आत्म चरित्र या एक 'तुजूक - ए जहाँगीर' नामक पुस्तक लिखी है। उसने इसमें चरित्र की उदारता, पवित्रता, राजनीति में दूरदर्शिता तथा अपनी प्रतिभा का दर्शन कराया है।
जहाँगीर ने अपने कलाकारों को विभिन्न उपाधियों से अलंकृत किया। जिनमें 'नादिर- उल-जमाँ' 'उस्ताद उल मुसव्वरीन' (चित्रकार शिरोमणि) 'नकबात उल मुहर्ररीन' (लेखक शिरोमणि) 'नादिर उल असर' (युग शिरोमणि) आदि हैं।
जहाँगीर शैली की विशेषताएँ
1. नवीन प्रयोग - जहाँगीर कालीन चित्रकला में हमें रुढ़िहीनता के दर्शन होते हैं तथा कला के क्षेत्र में नये प्रयोगों का साक्षात्कार होता है क्योंकि ईरानी प्रभाव इस समय समाप्त होने लगा था।
2. बारीक काम - इस क्षेत्र में यह शैली अकबर कालीन चित्रों से आगे बढ़ गयी है। जिस बारीकी से चित्रों का अंकन हुआ है वह अपूर्व है।
3. शिकार के चित्र - जहाँगीर कालीन मुगल कला के शिकार के चित्र बहुत सुन्दर बने हैं। जहाँगीर शिकार करने जब जाता था तो अपने साथ चित्रकारों को भी ले जाता था तथा उनसे शिकार के दृश्य चित्रित कराता था। इन चित्रों में हाथियों का बहुत ही भव्य चित्रण हुआ है।
4. पशु-पक्षियों का चित्रण - जहाँगीर कालीन चित्रों में पशुओं तथा पक्षियों का जैसा भव्य चित्रण हुआ है ऐसा पहले नहीं हुआ । पक्षियों को चित्रित करने में सर्वश्रेष्ठ चित्रकार उस्ताद मन्सूर था। इसका बनाया हुआ एक बाज का चित्र अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति पा चुका है। इसके अलावा सुन्दर मुर्गियों के चित्र भी हैं जो मन्सूर ने ही बनवाये थे।
5. स्वाभाविक चित्र - इस शैली के चित्रों में स्वाभाविकता है । जहाँगीर अपनी इच्छा से चित्र बनवाता था। एक दरबार के चित्र में अमीर व गरीब दोनों का चित्रण बड़ा स्वाभाविक है। इस चित्र में गरीब माँग रहे हैं हाथ ऊपर उठाये और अमीर भिक्षा देने में रत हैं तथा जहाँगीर ऊपर से यह सब दृश्य देख रहा है।
6. एक चश्म चेहरे - यह भी एक जहाँगीर कालीन चित्रकला में विशेष गुण था । यह भारतीयता की ही छाप के कारण एक चश्म चेहरे बने। राजस्थानी शैली में भी अधिकतर एक चश्म चेहरे हो बने थे। इन एक चश्म चेहरों को हम अपभ्रंश काल से देखते आ रहे हैं। इन्हीं से परिमार्जित होकर जहाँगीर कला का निर्माण हुआ जो वास्तव में अद्वितीय है।
7. व्यक्ति चित्रों में शबीह सुन्दर बनी है तथा काफी है। अकबरं शैली की तरह न होकर चित्रों में भीड़-भाड़ बहुत कम है।
8. स्वाभाविक रंग योजना - जहाँगीर कालीन चित्रों में रंगों में बहुत सुधार हुआ है। स्वाभाविक रंग योजना से चित्रों में सजीवता आ गयी। चित्रकारों ने यह प्रयास किया कि जैसा प्रकृति में रंग दिखाई देता है बिल्कुल वैसा ही चित्रों में लगायें। अकबर के समय में इतनी परिष्कृत रंग योजना का प्रयोग नहीं हुआ था ।
9. हाशियों का प्रयोग - जहाँगीर कालीन मुगल शैली में हाशियें बहुत ही सुन्दर बने हैं। कुछ व्यक्ति चित्रों के चारों इतना सुन्दर हाशिया बनाया गया है कि मुख्य चित्र काफी लगने लगा है।
10. परिपेक्ष्य - इस समय चित्रों में परिप्रेक्ष्य का भी बहुत ध्यान रखा गया है। चित्रों में गहराई दिखाई देती है। शिकार के चित्रों में यह देखा जा सकता है।
11. स्फुट चित्र - इस समय पोथी चित्र बनने बन्द हो गये थे। स्फुट चित्र ही जहाँगीर ने बनवाए, जिनमें आकृतियाँ न्यूनतम बनी हैं। अकबर के समय के भीड़-भाड़ के चित्र इस समय नहीं बने। दरबार, सूफी-सन्तों तथा शिकार के चित्र अधिक बने हैं।
12. सोने-चांदी के रंगों का प्रयोग - जहाँगीर कालीन चित्रों में सोने-चाँदी के रंगों का प्रयोग बहुत ही सुन्दर हुआ है अधिकतर हाशियों में इन रंगों का प्रयोग हुआ है।
13. प्रकृति चित्रण - इस समय चित्रों में प्रकृति चित्रण बहुत सुन्दर हुआ है। खासतौर पर विभिन्न प्रकार के फूलों व पेड़-पौधों का चित्रण इस समय हुआ है । जहाँगीर को प्रकृति से बहुत लगाव था। एक 'चिनार' के वृक्ष का बड़ा सुन्दर चित्र है। एक-एक पत्ती इतनी दक्षता से बनाई गयी है कि देखते ही बनता है।
14. इस समय स्त्रियाँ भी चित्रकारी करती थीं। बाद के चित्रों में यूरोपियन प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
'जहाँगीर' के चित्रकला प्रेम के प्रगाढ़ रूप को कुछ घटनाओं से हम बड़ी आसानी से समझ सकते है। उसने चित्रकला को सम्पूर्ण हृदय से पुष्पित एवं पल्लवित करने का प्रयत्न किया था। सर टॉमस रो ने लिखा है जब वह भारत आया और जहाँगीर से मिला तो उसने वह चित्र जो वह विलायत से लाया था जहाँगीर को दिखाया। जहाँगीर ने उस चित्र को लेकर अपने चित्रकारों से उसकी पाँच प्रतिकृतियाँ बनवाई और अगले दिन जब टॉमस रो के सामने 6 चित्र आये तो बड़ी कठिनाई से वह अपना चित्र पहचान सका । ये था जहाँगीर कालीन चित्रकारों का कमाल। टॉमस रो ने एक चित्र के लिये ऐसे ही कहा कि इसकी कीमत 50 रु. तो होगी, तब जहाँगीर ने हँसकर यह कहा कि 50 रु. मेरे चित्रकारों के लिए बहुत कम हैं क्योंकि मेरा कोई भी चित्रकार मन्सबदार से कम हैसियत का नहीं है। इससे टॉमस रो पर बहुत प्रभाव पड़ा और उसने जहाँगीर की इस बात की प्रशंसा की कि वह चित्रकारों को कितना चाहता था और कितने आदर भाव उन्हें रखता था।
इस प्रकार जहाँगीर मुगल शाहों में चित्रकला के क्षेत्र में सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ।
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